देव :एक फ़क़ीर...!

देव :एक फ़क़ीर...!
चलो दिल को छूलें...

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

तलाक


बार  बार एक दूसरे को  कहते रहे  " ऐसा क्यों,  वैसा क्यों , क्यों होता है, क्यों  किया जाता है ....."

शायद 'अपने आपसे' दोनों ने

कभी एक बार भी नहीं पूछा " ऐसा क्यों, वैसा क्यों, क्यों  होता है, क्यों किया जाता है......"

बस यही बात "बात यहाँ तक ले आयी....

और इन चंद सवालों ने ढेर सारे सवालों को जन्म दे दिया.....

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

बेघर


- ये बेघर क्यों ?
- आवारा सा क्यों फिरता है ?
सुना है " दोस्तों से बहुत प्यार करता है, अपनी चादर से उनके पैर ढँकता है....

रविवार, 2 अक्तूबर 2011

मार्गदर्शक


उसका प्रश्न : भौतिक व्यवहारिकता और अपने बुने स्वप्न की वास्तविकता के दोराहे पर "क्या सही" 
मार्गदर्शक ने कहा   "पहले ये तय करो क्या मुझ में विश्वास और स्वयं पर आत्मविश्वास है"
अब प्रश्न "विश्वास" पर रुक गया, वो सोचता ही रह गया और
मार्गदर्शक चला गया "क्योंकि विश्वास में प्रतिशत नहीं होता".....

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

निशान


आज  दोनों बिना हाथ थामे,  किनारे की रेत पर कदमों के निशान बनाते हुए, खामोश चल रहे थे...
रुक कर पीछे मुडी और कहा " देखो लहरों ने हमारे क़दमों के निशान मिटा दिए..
अगले महीने मेरी शादी है....तुम आना ज़रूर.."

पकौडियां......


जा अम्मा को भी  दे आ दो चार पकौडियां......
"अरे रुक...... ले तू भी तो खा मेरे हाथों से,
जब तेरा पापा तेरे जितना था ना,
तब बारिश के दिनों में ढेर सारी पकौडियां
एक हाथ तलती और एक हाथ फूंक मार मार उसे खूब खिलाती थी.."

बारिश


वो बरगद के नीचे बैठा ठिठुर रहा था,
बाबा अपने घर क्यों नहीं चले जाते, कुछ देर में बारिश "तेज" हो जायेगी, यहाँ नाहक भीग जाओगे
"मेरे घर की खपरैल "धीमी बारिश" में भी चूती है..."

सोमवार, 12 सितंबर 2011

जेहाद


वो लड़ाई को हाई कोर्ट तक ले आया था
उसे लगता था लड़ कर जीत जायेगा
एंट्री-पास लेने कतार में खड़ा था
किसी ने "जेहाद" की दुदुंभी बजाई
वो ज़िंदगी की लड़ाई हार गया...

अकेले


हम यहाँ अकेले क्यों रहते हैं दादी हमारे साथ क्यों नहीं रहतीं ?
बेटे ! हम बड़े अफसर हो गए हैं ना इस लिए.... और फिर बेटा! वो अब बूढ़ी भी हो चली हैं ,
हमें जब कोई  "बेटा"  कहकर बुलाता है तो बहुत अच्छा लगता है.....
आपको अच्छा नहीं लगता क्या?

चोरी


माँ चाहे कम पैसा मिले मान जाना
देर तक रुकने की शर्त मान जाना
जब तुम शादियों में रोटी बनाने जाती हो
बहुत अच्छा लगता है
इस बार फिर से वो काजूवाली बर्फी जरूर चुरा के लाना

शनिवार, 10 सितंबर 2011

खुशी ....

सूर्य की लाली फैलते ही उस दिन मोबाईल बज उठा ।
माँ मैं आ रहा हूं--
तू आ रहा है ---एक पल को दिवाली सी रौनक उसके मुख पर छा गई ।